Gold Reserve In India: विश्व स्वर्ण परिषद (WGC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने नवंबर 2024 में अपने स्वर्ण भंडार में 53 टन सोना जोड़ा है। इस वृद्धि में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का 8 टन सोने का योगदान रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी चुनाव के बाद सोने की कीमतों में आई गिरावट ने कुछ केंद्रीय बैंकों को सोना खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इसी दौरान सोने की खरीदारी जारी रखी है।
सबसे ज्यादा सोना किसने खरीदा
विश्व स्वर्ण परिषद (WGC) के अनुसार, नवंबर महीने में पोलैंड का नेशनल बैंक ऑफ पोलैंड (NBP) सोने का सबसे बड़ा खरीदार रहा है। पोलैंड ने नवंबर में अपने सोने के भंडार में 21 टन सोना जोड़ा है, जिससे इस साल की अब तक की कुल खरीद 90 टन हो गई है और कुल भंडार 448 टन पर पहुंच गया है। इसके अलावा, उज्बेकिस्तान के सेंट्रल बैंक ने भी नवंबर में अपने सोने के भंडार में 9 टन की वृद्धि की है। यह जुलाई के बाद से उज्बेकिस्तान द्वारा सोने के भंडार में की गई पहली मासिक वृद्धि है। रिपोर्ट के अनुसार, उज्बेकिस्तान का कुल सोना भंडार अब 382 टन हो गया है।
चीन ने भी सोने की खरीद की शुरू
चीन का केंद्रीय बैंक, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PBoC), ने छह महीने के बाद एक बार फिर सोने की खरीदारी शुरू की है। इस खरीदारी से चीन के सोने के भंडार में 5 टन सोना और जुड़ गया है। इस नए अधिग्रहण के साथ, इस साल की शुरुआत से अब तक चीन ने कुल 34 टन सोना खरीदा है। इस खरीदारी के बाद चीन का कुल सोने का भंडार अब 2,264 टन हो गया है। इसी बीच, तुर्की के केंद्रीय बैंक ने भी नवंबर 2024 में अपने सोने के भंडार में 3 टन की वृद्धि की है। इन दोनों देशों द्वारा सोने की खरीदारी से वैश्विक स्तर पर सोने की मांग में बढ़ोतरी हुई है।
किस लिए सेंट्रल बैंक खरीद रहे हैं सोना ?
2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ने के कारण कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने सोने को खरीदने का रुख अपनाया। विशेषकर उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों ने सोने को एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में देखा है। इन बैंकों का मानना है कि अस्थिर आर्थिक परिस्थितियों में सोना अपनी कीमत बनाए रखता है और इससे उनके देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है।
सिंगापुर ने बेचा आपने सोना
इस दौरान, सिंगापुर के मौद्रिक प्राधिकरण ने इस महीने सबसे अधिक सोना बेचा। उन्होंने अपने सोने के भंडार से 5 टन सोना कम कर दिया। इस वजह से, इस साल अब तक कुल 7 टन सोना बेचा जा चुका है और अब उनके पास कुल 223 टन सोना शेष बचा है।
RBI क्यों खरीद रहा है इतना सोना
विश्व सोना परिषद की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने नवंबर 2024 में अपने सोने के भंडार में और 8 टन सोना जोड़ा है। यह खरीदारी वैश्विक स्तर पर सोने के प्रति बढ़ते रुझान का हिस्सा है। नवंबर महीने में दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने कुल मिलाकर 53 टन सोना खरीदा। अमेरिकी चुनाव के बाद सोने की कीमतों में आई गिरावट से कई देशों के केंद्रीय बैंक सोना खरीदने के लिए प्रेरित हुए हैं। आरबीआई भी अन्य देशों की तरह सोने को एक सुरक्षित निवेश विकल्प मान रहा है और इसलिए इसे अपने भंडार में शामिल कर रहा है।
क्यों जरूरी है सोना खरीदना
विश्व के कई केंद्रीय बैंक सोने को एक सुरक्षित निवेश विकल्प मान रहे हैं। भू-राजनीतिक तनाव और मुद्रास्फीति के बढ़ते खतरे के मद्देनजर, ये बैंक अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहे हैं। भारत का रिजर्व बैंक भी इस दिशा में सक्रिय है और वर्ष के दौरान सोने का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार रहा है। चीन ने भी छह महीने के अंतराल के बाद सोने की खरीद फिर से शुरू की है और अपने भंडार में वृद्धि की है। हालांकि, सभी देश इसी रणनीति का पालन नहीं कर रहे हैं। सिंगापुर ने अपने सोने के भंडार में कमी की है। कुल मिलाकर, विश्व के केंद्रीय बैंकों का सोने की ओर रुझान इस बात का संकेत है कि वे सोने को एक सुरक्षित और स्थिर संपत्ति के रूप में देखते हैं।
भारत के पास कुल सोना कितना है
विश्व स्वर्ण परिषद के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2023 की इसी अवधि की तुलना में पांच गुना अधिक सोना खरीदा है। इसके चलते आरबीआई का कुल स्वर्ण भंडार अब 890 टन हो गया है, जिसमें से 510 टन भारत में ही सुरक्षित रखा गया है। न सिर्फ भारत बल्कि पोलैंड ने 21 टन और उज्बेकिस्तान ने 9 टन सोना खरीदा है। इन देशों द्वारा बड़ी मात्रा में सोना खरीदने से वैश्विक बाजार में सोने की कीमतों में भी तेजी देखी गई है। आरबीआई का आधा से अधिक स्वर्ण भंडार विदेशों में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के पास सुरक्षित रखा हुआ है। हालांकि, आरबीआई ने अपनी नीति में बदलाव करते हुए 2024 में यूनाइटेड किंगडम में रखे अपने 100 मीट्रिक टन सोने को भारत में शिफ्ट कर दिया है। यह कदम भारत में पर्याप्त भंडारण क्षमता उपलब्ध होने के कारण उठाया गया है। इससे ब्रिटेन में वॉल्ट के इस्तेमाल के लिए भुगतान किए जाने वाले उच्च शुल्क में बचत होगी।